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हे गुरूदेव ! हम सबको सदबुध्दी दे ,सतकर्तव्य करनेकी प्रवृत्ति दे ,सच बोलनका अभ्यास दे ,सतस्वरूप का ग्यान दे । हे जगदव्यापी परमेश्वर ! हम हर मनुष्य मात्र से प्रेमका,सत्यताका,बंधुत्व- -भावका आचरण करे और सुख दुखःमे सम रहे,ऐसी हमको शक्ती दे,युक्ती दे और भक्ती दे । हे सर्वधर्ममें,सर्व संतमे,समस्त संसार में,रममाण होनेवाले चैतन्यघन!हम तेरे लिए,तेरे देश के लिए,हर जीव जंतु के लिए,कुटीलताका,अनैत्तिकताका,छलछिद्र द्रोहताका त्याग करे ऐसा साहस दे । हे भगवान! अंतमे तुझमें समरस हो जाये यह हमारा ध्येय हैं,उद्देश है । इसके लिये तुझको स्मरके निश्चय करते है, प्रतिज्ञा करते है । हे विश्व धर्मको नियमन करनेवाले परमात्मा !जहाँभी,जिधरभी,हममें कुछ कमी दिखती हो,उसमे हमारा ध्यान लगाकर,उस चिज को,उस कार्यको,पुरा करने में हम अपना स्वराज्य समझते है , सूराज्य समझते है ।यह समझने की और कर्तव्य करनेकी हमको प्रियता दे,शक्ती दे ,वरदान दे

मंगळवार, ६ जून, २०१७

सामुदायिक प्रार्थना



सामुदायिक प्रार्थना
                                  आदर्श पाठ
(प्रारम्भ मे दो मिनिट तक शान्ति से 'मौन - प्रार्थना ' करने के पश्चात् 'सदगुरुनाथ महाराज कि जय' बोलकर निम्म पाठको मिलेजुले स्वरो मे गाना चहिऐ ।)
मंगलस्मण (सवैय्या)
मंगल नाम तुम्हारा प्रभू ! जो गावे मंगल होत सदा |
अमंगलहारी कृपा तुम्हरी , जो चाहत दिलको धोत सदा |
तुम आद-अनाद सुमंगल हो, अरु रुप तुम्हार निरमय है ।
तुकड्या कहे जो भजता तुमको, नित पावत मंगल निर्भय है ।                      

प्रार्थनाष्टक  (हरिगीत का छंद)

है प्रार्थना गुरुदेव से ,यह स्वर्गसम संसार हो ।
अति उच्चतम जीवन बने, परमार्थमय व्यवहार हो ॥
ना हम रहे अपने लिये, हमको सभी से गर्ज है ।
गुरुदेव ! यह आशीष दे ,जो सोचने का फर्ज है ॥ १॥

                          हम हो पुजरी तत्व के , गुरुदेव के आदेश के ।
 सच प्रेम के , नीत नेम के , सध्दर्म के ॥
हो चीड झुठी राह कि अन्याय कि अभीमान की।
 सेवा करनने को दास की ,पर्वा नही हो के जान की ॥२॥

छोटे न हो हम बुध्दी से , हो विश्वमयसे ईशमय।
 हो राममय अरु कृष्णमय , जगदेवमय जगदीशमय ॥
हर इंद्रियों ताब कर , हम वीर हो अति धीर हो ।
 उज्ज्वल रहे सरसे सदा , निहधर्मरत खंबीर हो ॥ ३॥

यह डर सभी जाता रहे ,मन बुध्दीका इस देहका ।
 निर्भय रहे हम कर्ममें, परदा खुलाकरे स्नेहका ॥
 गाते रहे प्रभुनाम पर , प्रभु तत्व पने के लिये।
हो ब्रह्मविद्द्या का उदय , यह जी तराने के लिये ॥४॥

अति शुध्द हो आचारसे , तन मन हमारा सर्वदा ।
 अध्यात्म की शक्ती हमे , पलभी नहि कर दे जुदा॥
इस अमर आत्मा क हमें, हर श्वासभरमें गम रहे ।
 गर मौतभी हो आगयी, सुख दुःख हम से सम रहे ॥५॥

गुरुदेव ! तेरी अमर ज्योतिका हमें निजज्ञान हो ।
सत् ज्ञानही तु है सदा ,यह विश्वभरमें ध्यान हो ॥
तुझमें नहीं है पंथ भी , ना देश भी ।
 तू है निरामय एकरस , है व्याप्तभी अरु शेष भी ॥६॥

गुण-धर्म दुलियामें बढे, हर जीवसे कर्तव्य हो ।
गंभीर हो सबके हृद्य , सच ज्ञानका वत्कव्य हो ॥
यह दुर हो सब भावाना , 'हम नीच है अस्पृश्य है'
               हर जीवका हो शुध्द मन , जब कर्म उनके स्पृश्य है ॥७॥

हम भिन्न हो इस देहसे , पर तत्वसे सब एक हो ।
 हो ज्ञान सबसे एकही , जिससे मनुज निःशंक हो।।
 तुकड्या कहे ऐसा अमरपद, प्राप्त हो संसार में ।
छोडे नही घरबार पर , हो मस्त गुरु-चरणार में॥८॥

९ टिप्पण्या:

Unknown म्हणाले...

जय गुरूदेव

Unknown म्हणाले...

Shree gurudev

Unknown म्हणाले...

जय गुरु

Free amazing tools for everyone म्हणाले...

जय गुरुदेव

Unknown म्हणाले...

जय गुरुदेव

अनामित म्हणाले...

Jay gurudev

अनामित म्हणाले...

या प्रार्थनेमध्ये काही शब्द गाळल्या गेले आहेत व काहि चुकले आहेत ते दुरुस्त करावे

अनामित म्हणाले...

Iska harmonioum notes do

अनामित म्हणाले...

Pranam koti koti
Maharaj tumhi roj aathwan yete
Tumhi,Damodar Swami Ani Sitaram Swami
Kahi बोलायला shabdh nahi
Tum May bap ho,

।।जय गुरुदेव।।