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हे गुरूदेव ! हम सबको सदबुध्दी दे ,सतकर्तव्य करनेकी प्रवृत्ति दे ,सच बोलनका अभ्यास दे ,सतस्वरूप का ग्यान दे । हे जगदव्यापी परमेश्वर ! हम हर मनुष्य मात्र से प्रेमका,सत्यताका,बंधुत्व- -भावका आचरण करे और सुख दुखःमे सम रहे,ऐसी हमको शक्ती दे,युक्ती दे और भक्ती दे । हे सर्वधर्ममें,सर्व संतमे,समस्त संसार में,रममाण होनेवाले चैतन्यघन!हम तेरे लिए,तेरे देश के लिए,हर जीव जंतु के लिए,कुटीलताका,अनैत्तिकताका,छलछिद्र द्रोहताका त्याग करे ऐसा साहस दे । हे भगवान! अंतमे तुझमें समरस हो जाये यह हमारा ध्येय हैं,उद्देश है । इसके लिये तुझको स्मरके निश्चय करते है, प्रतिज्ञा करते है । हे विश्व धर्मको नियमन करनेवाले परमात्मा !जहाँभी,जिधरभी,हममें कुछ कमी दिखती हो,उसमे हमारा ध्यान लगाकर,उस चिज को,उस कार्यको,पुरा करने में हम अपना स्वराज्य समझते है , सूराज्य समझते है ।यह समझने की और कर्तव्य करनेकी हमको प्रियता दे,शक्ती दे ,वरदान दे

बुधवार, ४ नोव्हेंबर, २०२०

आरती राष्ट्रसंताची

आरती राष्ट्रसंताची

आरती राष्ट्रसंता, जगद्गुरु कृपावंता|
रोमरोमी विश्वचिंता, योगियाच्या महंता||धृ||
ध्वज तू कळसावरी, सर्वात्मक गुरुदेवा|
डोलले धर्म सारे, कैसी अपूर्व ती सेवा||१||
धावत्या पावलांनी, लाखों गावींच्या शिला|
चैतन्ये उठविल्या, धन्य तुझी दिव्य लीला||२||
पाषाण अस्त्र केले, धर्मा दिली नव-कांती|
कैवल्य माणिकाची, जिंकी काळासहि शांती||३||
गर्जली 'ग्रामगीता', वेधी विश्वचि खंजरी|
समुदाय जीवनाचा, स्वर्ग फुलाया भूवरी||४||
समन्वय महाज्योती, तुकडोजी ब्रम्हमूर्ती|
गुरुदास लीन पायी, द्यावी आपुली स्फूर्ती||५||
(रचियता- साहित्यरत्न सुदामदादा सावरकर)

                          

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।।जय गुरुदेव।।