.

Drop Down MenusCSS Drop Down MenuPure CSS Dropdown Menu

हे गुरूदेव ! हम सबको सदबुध्दी दे ,सतकर्तव्य करनेकी प्रवृत्ति दे ,सच बोलनका अभ्यास दे ,सतस्वरूप का ग्यान दे । हे जगदव्यापी परमेश्वर ! हम हर मनुष्य मात्र से प्रेमका,सत्यताका,बंधुत्व- -भावका आचरण करे और सुख दुखःमे सम रहे,ऐसी हमको शक्ती दे,युक्ती दे और भक्ती दे । हे सर्वधर्ममें,सर्व संतमे,समस्त संसार में,रममाण होनेवाले चैतन्यघन!हम तेरे लिए,तेरे देश के लिए,हर जीव जंतु के लिए,कुटीलताका,अनैत्तिकताका,छलछिद्र द्रोहताका त्याग करे ऐसा साहस दे । हे भगवान! अंतमे तुझमें समरस हो जाये यह हमारा ध्येय हैं,उद्देश है । इसके लिये तुझको स्मरके निश्चय करते है, प्रतिज्ञा करते है । हे विश्व धर्मको नियमन करनेवाले परमात्मा !जहाँभी,जिधरभी,हममें कुछ कमी दिखती हो,उसमे हमारा ध्यान लगाकर,उस चिज को,उस कार्यको,पुरा करने में हम अपना स्वराज्य समझते है , सूराज्य समझते है ।यह समझने की और कर्तव्य करनेकी हमको प्रियता दे,शक्ती दे ,वरदान दे

मंगळवार, १३ जून, २०१७

सामुदायिक ध्यान


विश्वशांती की साधना सामुदायिक ध्यान

आवो सभी मिल जायके,प्रभू ध्यान धरेंगे
'सबका भला करो',यही आवाज करेंगे  ।। टेक ।।
बैठेंगे एक लैन लगाकरके सामनें
अपने बनाये भावको रखकरके सामनें
हम सर को झुकायेंगे,अभिमान हरेंगे  ।। १  ।।
गायेंगे वही गाना,सेवक पुकारते
लायेंगे अमलमें सदाही ,दिल सुधारते
निर्भय बनेंगे,ना कभी कालों से डरेंगे  ।। २ ।।
आती रही हवा भली दुनियामें जोर की
छोडेंगे नहीं कामना,प्यारे किशोर की  
तुकडया कहे गुरूदेव से,भवधार तरेंगे ।। ३ ।।
        
प्रातःस्मरामि ह्रदि संस्फुरदात्मतत्वम्
सच्चित्सुखम् परमहंसगतिं तुरीयम्  
'यत् स्वप्नजागरसुषुप्तमवैति नित्यम्  
तद् ब्रम्हनिषकलमहम् न च भूतसंघः

प्रातर्भजामि मनसो वचसामगम्यम्  
वाचों विभान्ति निखीला यदनुग्रहेण.
यन्नेंति-नेति वचनैर्निगमा अवोचू  
स्तं देवदेवमदमच्युतमाहुरग्यम्    

प्रातर्नमामी तमसः परमर्कवर्णम्  
पूर्णं सनातनपदं पुरूषोत्तमाख्यम्
यस्मिन्निदं   जगदशेषमशेषमुर्तो
रज्जवां भुजंगम इव प्रतिभासितं वै
               
                 ----------
हे गुरूदेव ! हम सबको सदबुध्दी दे ,सतकर्तव्य करनेकी प्रवृत्ति दे ,सच बोलनका अभ्यास दे ,सतस्वरूप का ग्यान दे  हे जगदव्यापी परमेश्वर ! हम हर मनुष्य मात्र से प्रेमका,सत्यताका,बंधुत्व- -भावका आचरण करे और सुख दुखःमे सम रहे,ऐसी हमको शक्ती दे,युक्ती दे और भक्ती दे
                 हे सर्वधर्ममें,सर्व संतमे,समस्त संसार में,रममाण होनेवाले चैतन्यघन!हम तेरे लिए,तेरे देश के लिए,हर जीव जंतु के लिए,कुटीलताका,अनैत्तिकताका,छलछिद्र द्रोहताका त्याग करे ऐसा साहस दे
        हे भगवान! अंतमे तुझमें समरस हो जाये यह हमारा ध्येय हैं,उद्देश है । इसके लिये तुझको स्मरके निश्चय करते है, प्रतिज्ञा करते है हे विश्व धर्मको नियमन करनेवाले परमात्मा !जहाँभी,जिधरभी,हममें कुछ कमी दिखती हो,उसमे हमारा ध्यान लगाकर,उस चिज को,उस कार्यको,पुरा करने में हम अपना स्वराज्य समझते है , सूराज्य समझते है यह समझने की और कर्तव्य करनेकी हमको प्रियता दे,शक्ती दे ,वरदान दे
       नारायण नारायण जय गोविंद हरे.
नमो सदगुरू! ज्ञानदीप-प्रकाशा !   नमो आद्यारूपा !अनंता! परेशा!!
नमो मंगलामंगल द्वैत हारी  !     नमो त्वत्कृपा पूर्ण दोषा निवारी!!
तुझे रूप ते पाहु दे विश्वव्यापीl    तुझी पाउले सेवु दे ग्रामरूपी !!
तुझे ज्ञान सर्वांतरी संचरू दे  ! तुझा सत्य आनंद लोकी भरू देll
खरे नाम निष्काम ही ग्रामसेवा !  झटू सर्वभावे करू स्वर्ग गावा !!
कळो हे वळो ,देह कार्यी पडू दे !      घडू दे प्रभो !एवढे हे घडू दे   !!
यानंतर ग्रामगीता वाचन 11 ओळी.
                   -------------

अपने आतम के चिंतनमें,    हरदम जागृत रहना है
            ओहं सोहं स्वाससे अपनी,  अंतरदृष्टी परखना है  टेक

     चंचल मनको बुद्धी विचारक,    शुद्धी सततही करना है
             निश्चल कर वृत्तीकी धारा,   अंतरमुखसे स्थिरना है ।। १ ।।

सहज समाधी चलते हलते,   सब कामोमें रखना है
      विश्वरूप विश्वात्मक दृष्टी,  अनासक्तीसे चखना है  ।। २ ।।

सुख दुःख दोनो जीवधर्म है,   इनसे निवृत होना है
         सदा आत्म आनंद की मस्ती,  पलपलमें अनुभवना है ।। ३ ।।

  संत मिले सतसंग लाभकर,  ग्यान-ध्यानमे रमना है  
           कर्म फलोका त्याग निहीतकर, शांती स्थानमें जमना है  ।। ४ ।।

 इस मानव जीवनमें इतनी,  मंजिल चढकर जाना है l
        तुकडयादास कहे यह बानी,  रोज रोज अनुभवना है   ।। ५ ।।

यानंतर शांतीपाठ l
हरि ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्ण मुदच्यते l
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ll
ऊँ शांतीः  ! शांतीः !!शांतीः !!!
सदगुरूनाथ महाराज की जय.

आत्मचिंतन l
                     घुटनोंपर बैठकर नमस्कार   -  जयघोष के लिए हो जाये खडे .
                   श्रीगुरूदेव का त्रिवार जय घोष  -                                                                                             श्रीगुरूदेवकी जय हो                                                                                                                              श्रीगुरूदेवकी जय हो               
 बोलोजी श्रीगुरूदेवकी जय हो
सामुदायिक ध्यान mp3 स्वरुपात डाउनलोड करण्यासाठी बटनावर क्लिक करा . 
https://drive.google.com/file/d/0Bzv86o6GMsFMQTJDTmJ3d0txSDg/view?usp=sharing
 सामुदायिक ध्यान pdf स्वरुपात डाउनलोड करण्यासाठी बटनावर क्लिक करा .


https://drive.google.com/file/d/0Bzv86o6GMsFMWjFXRGdXNzFadW8/view?usp=sharing

  PDF डाऊनलोड करण्यासाठी  बटनावर क्लिक करा .एक नविन विंडो उघडेल त्यातील उजव्या कोपऱ्यातील  बाणाच्या चिन्हावर क्लिक करा .  PDF  डाऊनलोड होऊन जाईल . 

                                                                              -  जय गुरुदेव


।।जय गुरुदेव।।