विश्वशांती
की साधना सामुदायिक ध्यान
आवो सभी मिल जायके,प्रभू ध्यान
धरेंगे ।
'सबका भला करो',यही आवाज करेंगे  ।। टेक ।।
बैठेंगे एक लैन लगाकरके सामनें ।
अपने बनाये भावको रखकरके सामनें ।
हम सर को झुकायेंगे,अभिमान हरेंगे
 ।। १  ।।
गायेंगे वही गाना,सेवक पुकारते ।
लायेंगे अमलमें सदाही ,दिल सुधारते ।
निर्भय बनेंगे,ना कभी कालों से
डरेंगे  ।। २ ।।
आती रही हवा भली दुनियामें जोर की ।
छोडेंगे नहीं कामना,प्यारे किशोर की
 ।
तुकडया कहे गुरूदेव से,भवधार तरेंगे ।। ३ ।।
प्रातःस्मरामि ह्रदि संस्फुरदात्मतत्वम् 
सच्चित्सुखम् परमहंसगतिं तुरीयम्   
'यत् स्वप्नजागरसुषुप्तमवैति नित्यम्  
तद् ब्रम्हनिषकलमहम् न च भूतसंघः 
प्रातर्भजामि मनसो वचसामगम्यम्   
वाचों विभान्ति निखीला यदनुग्रहेण. 
यन्नेंति-नेति वचनैर्निगमा अवोचू  
स्तं देवदेवमदमच्युतमाहुरग्यम्     
प्रातर्नमामी तमसः परमर्कवर्णम्  
पूर्णं सनातनपदं पुरूषोत्तमाख्यम् 
यस्मिन्निदं   जगदशेषमशेषमुर्तो 
रज्जवां भुजंगम इव प्रतिभासितं वै 
   
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हे गुरूदेव ! हम
सबको सदबुध्दी दे ,सतकर्तव्य करनेकी प्रवृत्ति दे ,सच बोलनका अभ्यास दे ,सतस्वरूप का ग्यान दे ।  हे जगदव्यापी
परमेश्वर ! हम हर मनुष्य मात्र से प्रेमका,सत्यताका,बंधुत्व- -भावका आचरण करे
और सुख दुखःमे सम रहे,ऐसी हमको शक्ती
दे,युक्ती दे और
भक्ती दे ।
              
  हे सर्वधर्ममें,सर्व संतमे,समस्त संसार में,रममाण होनेवाले चैतन्यघन!हम तेरे लिए,तेरे देश के लिए,हर जीव जंतु के लिए,कुटीलताका,अनैत्तिकताका,छलछिद्र द्रोहताका त्याग करे ऐसा साहस दे ।
   
    हे भगवान! अंतमे तुझमें समरस हो जाये यह हमारा ध्येय हैं,उद्देश है । इसके लिये तुझको स्मरके निश्चय करते है, प्रतिज्ञा करते है । हे विश्व धर्मको
नियमन करनेवाले परमात्मा !जहाँभी,जिधरभी,हममें कुछ कमी दिखती हो,उसमे हमारा ध्यान लगाकर,उस चिज को,उस कार्यको,पुरा करने में हम अपना स्वराज्य
समझते है , सूराज्य समझते है
।यह समझने की और कर्तव्य करनेकी हमको प्रियता दे,शक्ती दे ,वरदान दे ।
   
   नारायण नारायण जय गोविंद हरे.
नमो सदगुरू! ज्ञानदीप-प्रकाशा !   नमो आद्यारूपा
!अनंता! परेशा!!
नमो मंगलामंगल द्वैत हारी  !     नमो त्वत्कृपा
पूर्ण दोषा निवारी!!
तुझे रूप ते पाहु दे विश्वव्यापीl    तुझी पाउले सेवु
दे ग्रामरूपी !!
तुझे ज्ञान सर्वांतरी संचरू दे  ! तुझा सत्य आनंद लोकी भरू देll
खरे नाम निष्काम ही ग्रामसेवा !  झटू सर्वभावे करू
स्वर्ग गावा !!
कळो हे वळो ,देह कार्यी पडू
दे !      घडू दे प्रभो !एवढे हे घडू दे   !!
यानंतर ग्रामगीता वाचन 11 ओळी.
   
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अपने आतम के चिंतनमें,    हरदम जागृत रहना है ।
            ओहं सोहं स्वाससे अपनी,  अंतरदृष्टी परखना है  । टेक ।
     चंचल मनको बुद्धी विचारक,    शुद्धी सततही
करना है ।
             निश्चल कर वृत्तीकी धारा,   अंतरमुखसे
स्थिरना है ।। १ ।।
सहज समाधी चलते हलते,   सब कामोमें रखना है ।
      विश्वरूप विश्वात्मक दृष्टी,  अनासक्तीसे चखना
है  ।। २ ।।
सुख दुःख दोनो जीवधर्म है, इनसे निवृत होना है
         सदा आत्म आनंद की मस्ती,  पलपलमें अनुभवना
है ।। ३ ।।
  संत मिले सतसंग लाभकर,  ग्यान-ध्यानमे रमना है  
           कर्म फलोका त्याग निहीतकर, शांती स्थानमें जमना है  ।। ४ ।।
 इस मानव जीवनमें इतनी,  मंजिल चढकर जाना है l
        तुकडयादास कहे यह बानी,  रोज रोज अनुभवना है   ।। ५ ।।
यानंतर शांतीपाठ l
हरि ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्ण मुदच्यते l
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ll
ऊँ शांतीः  ! शांतीः !!शांतीः !!!
सदगुरूनाथ महाराज की जय.
आत्मचिंतन l
                     घुटनोंपर बैठकर नमस्कार   -  जयघोष के लिए हो जाये खडे .
                   श्रीगुरूदेव का त्रिवार जय घोष  -                                                                                         
   श्रीगुरूदेवकी जय हो                                                                                                                              श्रीगुरूदेवकी जय हो               
 बोलोजी श्रीगुरूदेवकी जय हो
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३ टिप्पण्या:
सस्नेह जय गुरू 🙏🏼
जय गुरु
Jay guru
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