.

Drop Down MenusCSS Drop Down MenuPure CSS Dropdown Menu

हे गुरूदेव ! हम सबको सदबुध्दी दे ,सतकर्तव्य करनेकी प्रवृत्ति दे ,सच बोलनका अभ्यास दे ,सतस्वरूप का ग्यान दे । हे जगदव्यापी परमेश्वर ! हम हर मनुष्य मात्र से प्रेमका,सत्यताका,बंधुत्व- -भावका आचरण करे और सुख दुखःमे सम रहे,ऐसी हमको शक्ती दे,युक्ती दे और भक्ती दे । हे सर्वधर्ममें,सर्व संतमे,समस्त संसार में,रममाण होनेवाले चैतन्यघन!हम तेरे लिए,तेरे देश के लिए,हर जीव जंतु के लिए,कुटीलताका,अनैत्तिकताका,छलछिद्र द्रोहताका त्याग करे ऐसा साहस दे । हे भगवान! अंतमे तुझमें समरस हो जाये यह हमारा ध्येय हैं,उद्देश है । इसके लिये तुझको स्मरके निश्चय करते है, प्रतिज्ञा करते है । हे विश्व धर्मको नियमन करनेवाले परमात्मा !जहाँभी,जिधरभी,हममें कुछ कमी दिखती हो,उसमे हमारा ध्यान लगाकर,उस चिज को,उस कार्यको,पुरा करने में हम अपना स्वराज्य समझते है , सूराज्य समझते है ।यह समझने की और कर्तव्य करनेकी हमको प्रियता दे,शक्ती दे ,वरदान दे

रविवार, १३ डिसेंबर, २०२०

लहर की बरखा

 

 

राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज रचित "लहर की बरखा"


मंगल नाम तुम्हार प्रभू ! जो गावे मंगल होत सदा ।

 अमंगलहारि कृपा तुम्हारी,जो चाहत दिलको धोत सदा।।

 तुम आद अनाद सुमंगल हो, अरु रुप तुम्हार निरामय है।

तुकड्या कहे जो भजता तुमको, नित पावत मंगल निर्भय है।।

(हरिगीत-छंद)

मंगल स्वरुप तो आप हो, हम तो तुम्हारे दास है।

तुम्हरी कृपा मंगल करे-ऐसा रहे अभ्यास है।।

यहि चाहते मंगलकरण ! नित ख्याल हमको दीजिये।

 हे सद्गुरो! हम बालकोंपर, नैन-बरखा कीजिये।।

मेरे परम  आनंदघन, कैवल्यदानी हो तुम्ही।

 तुम बीन शांती ना हमें, दिलकी निशानी हो तुम्ही ॥

बस, जन्मका साफल्य है, तेरे दरस दीदारसे।

 चाहे गुरु के चरण जो, सो ही तरे भव -धारसे।।

प्रभू! मानव-जन्म दिया हमको,

पर बुद्धि रही पशुओंके समाना।

नहिं ज्ञान कबहुँ सपनेहुँ मिले,

नितपावत देहनको अभिमाना।।

मुफ्त गई जिंदगी हमरी,

धनलोभ सदा विषयों मनमाना ।

अबतो कर ख्याल कछू हमपे,

नहिं तो कल देश मिलाय बिराना।।

दुर्गुणके है पात्र हम, तुमसे नहीं प्रभु ! छीपता।

पर भी तुम्हारी है दया, देदी हमें बुद्धीमता ।।

 उपयोग हम करना सदा, ऐसी तुम्हारी भाक है।

 पर जीव - हम विषयी बने, मालुम नहीं क्या झाँक है।।

 

दरबारमें स्वामी ! तुम्हारे, क्या नहीं ? सब है भरा ।

 धर्मार्थ कामरु मोक्ष है, जो चाहते करते पुरा ।।

पर लाज हमको आ रही, किस हाथसे माँगे तुम्हें ।

 नहिं याद भी तुमरी करी, नित झूठके संगमें गमे ।

 

 प्रभू ! हो हमारे पासमें, नहिं जानते तुमको हमी।

 गर जानते थे आपको, किस बातकी रहती कमी ?

 हमतो भुले है झठसे, माया जाती , माया-नटीके ढंगमें।

 करके भिखारी हो गये, अब ख्याल होता है हमें।।

मोटे भये अभिमानसे, पर ध्यान तो सब नीच है।

 नहि शांतता पल भी रहे, भूले विषयके बीच हैं।।

ऐसे अधम के नावको, प्रभु! किस जगह रखवायेंगे?

 तारो नहीं जलदी कभी, हमरी सजा हम पायेंगे ।।

पुरी फजीती कर प्रभु ! तब याद तेरी आयगी।

 हम है बडे बैमान नहिं तो, खबर सब भुल जायगी ।।

 रख दुःखमें संसारके , तब तो पुकारेंगे तुझे ।

नहिं तो कठिन है मोह यह, नहिं याद आती है मुझे ।।

१०

विन कष्ट हो संसारमें, ईश्वर भजन आता नहीं।

 प्रभु ! कष्ट दे दो मुझे, दिल तब तलक छाता नहीं।।

मैं खूब करता याद पर, प्रेमा नहीं पाता कभी।

 बैराग दे संसार से, फिर याद हो सच्ची तभी।।

 ११

हम आपके है पात्र, देना दंड तुम्हरा काम है।

 बिन दंड हो बुद्धी कभी, पाती नहीं आराम है।।

ऐसी सजा प्रभु ! दीजिये, जावे न सिद्धी-मोहमें।

बस नाम लेकर आपका, छीवू न फिरसे द्रोहमें ।।

 

१२

 नहिं मूढ मेरे-सा कहीं, तुमको मिलेगा आखरी ।

 सुख- भोग में हूँ चाहता, तुमसे कराता चाकरी ।।

 सिरपे हमारे पापका-बोझा कहाँ पर डालना ? |

बस, न्याय तो तेराहि यह, 'जिसका उन्हेंही सम्हालना'।।

१३

दिलसे प्रभो ! हम है दुखी, अब आपही खुद जानते ।

 यह दिल जरा ना मानता, चाहे तजो यह प्राणते ॥

करके सभी जपजापभी-सतसंगभी करते सदा ।

 लेकिन भुली है राह तो, दिल है वही वैसा गधा ।।

 

 



।।जय गुरुदेव।।